आज दोपहर 12 बजे क्नॉट प्लेस में वेन्गर के पास वाले एक कैफ़े कॉफ़ी डे में हिन्दी ब्लॉगर भेंटवार्ता का आयोजन निश्चित किया गया, तमाम सर्कुलर नोटिस आदि छाप फैला दिए गए थे। अब तुरत-फुरत ब्लॉगर भेंटवार्ता आयोजित की गई थी इसलिए कुछ लोग नहीं भी आ पाए। पर बहरहाल, मैं समय से पूरे 10 मिनट पहले कैफ़े में पहुँच गया और पंडित शिवकुमार शर्मा को सुन समय व्यतीत करने लगा। जब निर्धारित समय से बीस मिनट ऊपर हो गए और कोई नहीं आया तो मैंने जगदीश जी को फुनवा लगाया और उन्होंने कहा कि वे 10-15 मिनट में पहुँच रहे हैं। मैं आश्वस्त होकर बैठ गया कि सामूहिक रूप से मुझे उल्लू नहीं बनाया जा रहा और वाकई कोई भेंटवार्ता हो रही है। लेकिन उसके भी 25 मिनट ऊपर हो गए और कोई नहीं आया, न सृजनशिल्पी जी और न ही जगदीश जी(जिनको कि 10 मिनट पहले पहुँच जाना चाहिए था)! तो अब मैंने नीरज बाबू को फोन लगाया और उनसे पूछा कि वे कहाँ हैं। उनका तो भेंटवार्ता में आने का कार्यक्रम ही नहीं था क्योंकि वे ऑफ़िस में नौकरी बजा रहे थे, तो ऐसे ही उनसे बात होने लगी और फिर मैंने अपनी खीज व्यक्त की कि एक घंटा होने को आया और कोई भी नहीं आया अभी तक, स्वयं आयोजक सृजनशिल्पी जी तक नदारद थे। इसी बीच मैंने एक कॉफ़ी मंगवा ली थी और शनिवार के एक अख़बार में कुछ समाचारों को पढ़ते हुए कुछ नोट्स बना रहा था(उनसे एक पोस्ट लिखूँगा शीघ्र ही)। अभी नीरज बाबू से बतिया ही रहा था कि यदि अगले पाँच मिनट तक कोई नहीं आया तो मैं निकल लूँगा क्योंकि मुझे लग रहा था कि मुझे उल्लू बनाया गया है, जगदीश जी मुझे आते दिखाई पड़े। आते ही उन्होंने बताया कि पास ही में मौजूद दूसरे कैफ़े कॉफ़ी डे में सभी लोग जमा हो गए हैं। मैं अवाक्‌ रह गया क्योंकि दिशानिर्देश तो मैंने इसी कैफ़े के दिए थे तो सभी कहाँ पहुँच गए!! खैर बहरहाल, मैं अपनी कॉफ़ी का भुगतान कर जगदीश जी और मसिजीवी साहब के साथ हो लिया।

दूसरे कैफ़े में पहुँच देखा कि सृजनशिल्पी जी नीलिमा जी, नोटपैड वाली डॉक्टर जी और अमिताभ(बच्चन नहीं त्रिपाठी, लोकमंच वाले) जी से भेंट तो कर चुके थे, अब साथ बैठे वार्ता आरंभ कर चुके थे। अब यह देख मेरे मन में पहला विचार यही आया कि जब सही दिशानिर्देश देने पर यह हाल है तो …..। बहरहाल, अब क्या करते, हमने तो इन लोगों को वेन्गर के बाद मुड़कर उपस्थित कैफ़े में आने को बोला था, ये लोग बिना मुड़े सीधे चलकर पहले पड़ने वाले कैफ़े में पहुँच गए। खैर, तो भेंटवार्ता आरंभ थी, हम लोग भी विराज गए(कुर्सियों पर)। चूँकि बाकी सभी के लिए कॉफ़ी आ चुकी थी, तो साथ देने के लिए मैंने भी कॉफ़ी मंगवा ली।

हाँ तो अब कार्यक्रम चालू हुआ तो बात पर बात निकल चली। अभी ताज़ा-२ विवाद में रहे मोहल्ले का ज़िक्र आना तो बिलकुल स्वभाविक बात थी। अब यह संयोग समझिए कि कुछ और, थोड़ी देर बाद ही मोहल्ले वाले अविनाश महोदय अपनी धर्मपत्नी सहित पहुँच गए(कदाचित अकेले आते डर रहे होंगे)। 😉 तो जैसा कि घोड़े के मुँह से सुनने का प्रचलन है, सभी ने घेर लिया अविनाश जी को और कर दी प्रश्नों की बौछार। मुझे लगता है कि वे पूरी तरह से तैयारी करके आए थे इसलिए तुरंत उत्तर प्रस्तुत करने आरंभ कर दिए। 😉


(बांये से: नीलिमा जी, सृजनशिल्पी जी, अविनाश जी, जगदीश जी, मुक्ता जी, अमिताभ जी)

और इधर मैं बैठा सोच रहा था कि अभी तक की हिन्दी ब्लॉगर भेंटवार्ताओं का यदि अवलोकन किया जाए(और पिछली वाली दिल्ली में हुई भेंटवार्ता को नज़रअंदाज़ कर दिया जाए) तो अभी तक पूर्णतया मर्दाना रही भेंटवार्ताओं का क्रम आज टूट उसमें जनाना टच आ गया!! 😉 अब इसे किसी दूसरे अंदाज़ में न लिया जाए, मैं सिर्फ़ रपट पेश करने के अंदाज़ में कह रहा हूँ!! 😉 😛


(बांये से दूसरे स्थान पर लाल-नारंगी सूट में: नोटपैड वाली डॉक्टर जी)

तो प्रश्नों की गोलियाँ दगती रही, उत्तरों से प्रतिवार होता रहा, लेकिन यह सब संयत तरीके से हो रहा था, कैफ़े वालों ने हमें बाहर नहीं निकाला। लेकिन थोड़े समय बाद सर्वसम्मती से यह तय किया गया कि बाहर सेन्ट्रल पार्क में बैठा जाए, कैफ़े में बैठे अन्य लोगों को बहुत पका लिया अब थोड़ा उन पर रहम किया जाए, बेचारे तोता-मैना के युगल जोड़ों को एकान्त दिया जाए। 😉 तो बाहर पार्क में आकर सृजनशिल्पी जी ने मुझसे पूछा कि कहाँ बैठा जाए तो गेम शो की भांति उनको दो ऑप्शन देते हुए मैंने कहा कि घास और पत्थर में से चुन लें कि कहाँ तशरीफ़ रखी जाए, तो घास पर ही सभी ने रख दी ….. अरे भई तशरीफ़ और क्या!!

तो अब सेन्ट्रल पार्क में भी टनाटन वार्ता आरंभ हुई और बीच-२ में हंसी मज़ाक के साथ पूरे ज़ोर पर चली। थोड़े समय बाद नोटपैड वाली डॉक्टर साहिबा ने विदा ली, उनको भूख लग रही थी और किसी ने उनको भोजन पर आमंत्रित किया था, इसलिए उनको हम लोगों के साथ मैकडॉनल्ड अथवा काके दे होटल में खाना गवारा नहीं था, भई फिर वो आमंत्रण देने वाले के यहाँ जाकर क्या करतीं!! 😉 लेकिन उनके जाने के बाद भी हम लोग रूके नहीं और पिले रहे, समय पंख लगा उड़ता रहा और हमें पता नहीं चला।


(बांये से: सूरज चाचू, उड़ते हुए कुछ अपरिचित कौवे जिन्होंने ब्लॉगर भेंटवार्ता में आने से साफ़ इन्कार कर दिया)

संध्या घिर आई, भूपेन जी आकर बैठे ही थे कि सभी दुकान बढ़ाने के उद्देश्य से उठ गए, नीलिमा जी और मसिजीवी जी को लगा कि अब घर-बार की सुध लेनी चाहिए तो उन्होंने भी विदा ली। लेकिन हम बाकी के सात जन पहुँच गए पास ही स्थित केवेन्टर्स पर और वहाँ फ़्लेवर युक्त स्वादिष्ट ठंडे दूध से तृष्णा शांत की गई। अब मोहल्ले वालों ने, अर्थात्‌ अविनाश जी और उनकी धर्मपत्नी मुक्ता जी ने, और भूपेन जी ने विदा ली। बचे रह गए मैं, जगदीश जी, अमिताभ जी और सृजनशिल्पी जी। हम लोग पुनः सेन्ट्रल पार्क में आ बैठे और कुछ हल्की-फुल्की टेक्नॉलोजी पर चर्चा के बाद चर्चा निकल चली सृजनशिल्पी जी के आजकल के विषय पर यानि कि उनके नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर छपने वाले पर्चों पर और उन्होंने काफ़ी अनुमान करवाया कि कितना और क्या पढ़ा है, और बहुत कुछ उसमे से छाप नहीं पाएँगे क्योंकि उससे संबन्धित बातें और दस्तावेज गोपनीय रखे गए हैं। तो बहरहाल इसी विषय पर बात होती रही, विदा लेने के लिए खड़े हो गए लेकिन बात चलती रही और तकरीबन एक घंटा खड़े-२ ही बात चलती रही।

अंततः सांयकाल साढ़े छह बजे, लगभग 6 घंटे चलने के बाद, भेंटवार्ता समाप्त हुई और सभी अपने-२ ठिकानों की ओर बढ़ गए। मेरी जानकारी अनुसार यह कदाचित्‌ अभी तक ही सबसे लंबी ब्लॉगर भेंटवार्ता थी। 🙂