यह क्या हो रहा है? कभी सुना था कि अमेरिका में टेलीमार्केटिंग तथा डोर-टू-डोर सेल्समैन/सेल्सवूमन परेशान करते हैं लेकिन अब यही चलन यहाँ भारत में भी चल निकला है!!! किसी को नया फ़ोन कनेक्शन लिए अभी एक दिन नहीं होता कि सबसे पहले घंटी बजाने वाला कोई न कोई टेलीमार्केटिंग वाला होता है। अभी मैंने कुछ समय पहले ऑफ़िस के कार्य के लिए आईडिया वालों का नया कनेक्शन लिया केवल जीपीआरएस(GPRS) सुविधा के लिए और कनेक्शन चालू होते ही पहला फ़ोन बजा एयरटेल वालों के यहाँ से, उनके कॉल-सेन्टर वाली मोहतरमा ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनका(एयरटेल) वालों का पोस्ट-पेड कनेक्शन लेना चाहूँगा!! मन तो किया कि उसे चार गाली सुनाऊँ और फ़ोन काट दूँ, लेकिन उसको प्यार-मोहब्बत वाली भाषा में समझाया कि पुनः इस नंबर पर फ़ोन न करे!!

रोज़ किसी न किसी मार्केटिंग वाले या वाली का फ़ोन बजता रहता है, यह समस्या और भी खीजपूर्ण हो जाती है जब शहर से बाहर रोमिंग पर हो और तब किसी ऐसे व्यक्ति का फ़ोन आ जाए। अब इसका उपाय यही है कि या तो शहर से बाहर होने पर किसी का फ़ोन मत उठाओ, या सिर्फ़ परिचित नंबरों से आने वाले फ़ोन उठाओ। लेकिन अपनी आदत हर किसी का फ़ोन लेने की है इसलिए मारे जाते हैं। वह तो शुक्र है कि महानगर टेलीफ़ोन निगम की दूसरी सरकारी सेवा भारत संचार निगम से सैटिंग है और इसी कारण अपनी रोमिंग इतनी महंगी नहीं पड़ती जितनी महंगी अन्य सेवाओं में पड़ती है!!

मैंने कहीं पढ़ा/सुना था कि अमेरिका में एक “do not disturb” जैसी कोई लिस्ट है और जो फ़ोन नंबर उसमें हैं उनपर टेलीमार्केटिंग वाले फ़ोन नहीं लगा सकते। क्या यह सही है? यह तो अपने अमेरिका में प्रवास करने बंधु ही बता सकते हैं। 🙂 यदि ऐसा जुगाड़ यहाँ हो जाए तो बहुत सही हो जाएगा!!

इसी बात पर एक वाक्या ध्यान आता है जो अभी कुछ समय पहले मेरे एक मित्र ने मुझे बताया था। दरअसल मेरे उस मित्र का एक अभिन्न मित्र एचडीएफ़सी बैंक में लोन विभाग में मैनेजर है। एक दिन उसको एचडीएफ़सी बैंक के कॉलसेन्टर से फ़ोन आया और फ़ोन वाली मोहतरमा उनको पर्सनल(निजी) लोन लेने के लिए आग्रह करने लगी। आखिरकार खीज के उस मित्र ने गुस्से में आ कह दिया कि जिस लोन को वह मोहतरमा देने का प्रयास कर रही हैं वह लोन तब तक नहीं पॉस होगा जब तक वह मित्र उस पर दस्तखत नहीं करेंगे!! यह सुन मोहतरमा थोड़ी हकबका गई और माफ़ी माँगते हुए फ़ोन रख दिया!!! 😉

लेकिन सिर्फ़ मार्केटिंग वाले ही क्यों, कस्टमर सपोर्ट अर्थात्‌ ग्राहक सेवा वाले भी ऐसे खिजाऊ प्रकार के प्राणी होते हैं कि बस पूछो मत!! अभी इस महीने की 6 तारीख़ को आईडिया वालों का बिल आ गया, बिल जमा करने की आखिरी तारीख़ 16 फ़रवरी थी। अगले ही दिन यानि कि 7 फ़रवरी को आईडिया वालों की ओर से फ़ोन आया जिसमें फ़ोन करने वाले साहब ने बताया कि मेरा बिल डिलिवर हो चुका है, यानि मुझे मिल चुका है और मैं उसे कब जमा करवा रहा हूँ। मैंने कहा कि 16 फ़रवरी तक मैं कभी भी जमा करवा सकता हूँ इसलिए मुझसे दोबारा न पूछें कि कब जमा करवा रहा हूँ। अगला दिन आराम से बीता, कोई फ़ोन नहीं आया, पर उसके अगले दिन यानि कि 9 फ़रवरी को पुनः फ़ोन आ गया। इस बार भी मैंने वही उत्तर दिया पर थोड़ी सख्ती से। तीन दिन बाद जैसे ही मुझे समय मिला तो तुरंत आईडिया वालों की वेबसाइट पर जाकर बिल जमा करवा दिया, तारीख़ थी 12 फ़रवरी। तुरंत ही एसएमएस(SMS) द्वारा मुझे सूचित कर दिया गया कि मेरा बिल जमा हो गया है। मैंने सोचा कि चलो एक महीने के लिए जान छूटी, परन्तु इतनी आसानी से कैसे छूटनी थी!! 15 फ़रवरी को पुनः आईडिया वालों की ओर से एक मोहतरमा का फ़ोन आया और उन्होंने मुझसे वही कहा जो पहले के साहबान ने कहा था, कि मैं अपना बिल कब जमा करवा रहा हूँ!! अब तो मेरा पारा चढ़ गया, उसको प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं परन्तु मन ही मन में ऐसी ऐसी गालियाँ दीं जो मुझे यकीन है कि अभी ईजाद भी नहीं हुई होंगी! खीज भरे स्वर में मैंने उससे पूछा कि क्या वह अपने कंप्यूटर द्वारा आईडिया के नेटवर्क में लाग्गडइन है। उसके हाँ में उत्तर देने पर मैंने उससे कहा कि वह अपने कंप्यूटर पर पहले यह क्यों नहीं देख लेती कि जिस नंबर पर बिल की उगाही के लिए फ़ोन लगा रही है उस पर कोई बिल बकाया है भी या नहीं। और इतना कह मैंने फ़ोन काट दिया!! मन तो कर रहा था कि उसको खूब सुनाऊँ लेकिन किसी तरह बस अपने पर संयम रखा!!

ऐसे ही अन्य वाक्यों के बारे में पढ़ने/सुनने और अनुभव करने के बाद सोचता हूँ कि क्या सभी कॉलसेन्टर वाले ऐसे ही जड़बुद्धि होते हैं? और इन टेलीमार्केटिंग वालों से कैसे निजात पाई जाए?? तौबा!!