पिछले अंक से आगे …..

सुबह उठ सभी जल्दी तैयार हुए और होटल में ही तुरन्त नाश्ता निपटा के दरगाह शरीफ़ की ओर निकल पड़े। पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर हम लोग दरगाह की ओर चल पड़े। बाज़ार में हितेश और योगेश ने सुन्दर सी टोपियाँ खरीदीं।


( दरगाह में जाने के लिए तैयार )


हितेश तो लाल रंग की जैकेट, अपनी टोपी और धूप के चश्में के कारण किसी फिल्म का हीरो टाईप ऑटो ड्राईवर लग रिया था!! 😉 हमको बाज़ार में ही एक साहब मिले जो हमारा मार्गदर्शन करते हुए हमें दरगाह तक ले गए। दरगाह पर चढ़ाने के लिए चादर आदि ले कर हमने दरगाह में प्रवेश किया, वे साहब निरंतर हमारे साथ मार्गदर्शन करते हुए चल रहे थे। फ़िर एक जगह अंदर अंदर प्रवेशद्वार पर वे रूके, वहाँ बैठे मुल्ला जी ने हमें अपने सामने बिठा हमसे अजमेर शरीफ़ के दरबार में दुआ मंगवाई।


( अजमेर शरीफ़ में बैठे मुल्ला जी )


अन्य श्रद्धालु जन भी वहाँ पास ही दुआ में हाथ उठाए खड़े थे।


( अजमेर शरीफ़ में दुआ में उठे हाथ )


तीन दिन बाद मोहर्रम होने के कारण दरगाह पर कुछ अधिक ही भीड़ थी। बहरहाल हमारे मार्गदर्शक महोदय ने हमें अंदर प्रवेश करवा ही दिया, अंदर जाते ही पता चला कि बाहर की भीड़ तो कुछ भी नहीं थी, वास्तव भीड़ का एहसास तो अंदर हुआ जहाँ पाँव रखने की भी जगह नहीं थी। बड़ी कठिनाई से एक मुल्ला जी को चादर दी गई और फ़िर हम सभी बाहर की ओर निकल लिए। निकास द्वार के कुछ पहले एक मुल्ला जी ने मेरे को पकड़ लिया और मेरे गले में धागा बाँध कर कुछ बुदबुदा के फ़ूँका और फ़िर अपनी दक्षिणा माँगी। अब दिक्कत की बात यह थी कि मेरे पास पैसे नहीं थे क्योंकि मेरे ट्रैक सूट में सही जेब न होने के कारण मैंने अपना मोबाईल तथा बटुवा हितेश को दे दिए थे जो कि मेरे से काफ़ी पीछे था। मैंने मुल्ला जी से कहा कि मेरे पास पैसे नहीं मेरे साथी के पास हैं जो कि पीछे आ रहा है पर कदाचित्‌ उन्होंने समझा कि मैं उनसे कह रहा हूँ कि वे मेरे साथी से पैसे ले लें तो वे बोले कि देने तो मुझे अपने हाथ से ही होंगे, जितने चाहे उतने दे दूँ। फ़िर मैंने उनको पुनः कहा कि मेरे पास एक रूपया भी नहीं है, तो तब उन्होंने मेरे को छोड़ा। छूटते ही मैं तुरंत गोली की तरह बाहर निकल आया तथा मैं और एन्सी(जो मेरे आगे ही थी और मुल्ला जी की गिरफ़्त में नहीं आई थी) बाकी मित्रों की प्रतीक्षा करने लगे। जल्द ही बाकी लोग भी आ गए तो फ़िर जिसकी श्रद्धा था उन्होंने मन्नत माँगते हुए पास ही की दीवार की जाली में धागे बाँधे।


( अजमेर शरीफ़ )


तत्पश्चात हमने आसपास की कुछ तस्वीरें लीं, थोड़ी देर एक जगह बैठ विश्राम किया। हमारे मार्गदर्शक महोदय हमारे पास आए और अपना कार्ड हमें दिया। हम सभी अभी तक सोचे बैठे थे कि वे अन्य गाईडों की भांति अंत में हमने पैसे माँगेंगे परन्तु उन्होंने बताया कि वे दरगाह समीति की ओर से नियुक्त किए गए पुजारियों में से एक हैं जिनका कार्य पर्यटकों को गरगाह के दर्शन करवाना है ताकि वे किसी गलत व्यक्ति(जैसे कि किसी दुकानदार, पेशेवर गाईड आदि) के चक्कर में न पड़ जाएँ और वे इसके लिए पर्यटकों से कोई पैसा नहीं लेते। कुछ देर दरगाह प्रांगण में बिता हमने बाहर की राह पकड़ी। बाहर निकलने से पहले हमने मुग़ल बादशाह अकबर द्वारा दान में दी गई बड़ी देग़ और जहाँगीर द्वारा दी गई छोटी देग देखी जिनमें कभी सैकड़ों लोगों के लिए खाना बनता था।


( अकबर द्वारा दी गई बड़ी देग )


सीढ़ियाँ चढ़ के ऊपर पहुँच देखा कि देग में अब पैसे आदि पड़े हैं, अन्धविश्वासी लोगों ने इसको भी नहीं छोड़ा और इसे भी मन्नत माँगने का स्थान बना दिया। उस समय कैसे भाव मन में आए यह मैं व्यक्त नहीं कर सकता!!

दरगाह से बाहर आ मैंने दो प्रकार के इत्र लिए। बाज़ार से वापसी के दौरान हितेश का मन अढ़ाई दिन का झोंपड़ा देखने का हुआ तो वह और स्निग्धा उसे देखने चले गए और हम बाज़ार में प्रतीक्षा करने लगे। कुछ समय बाद दोनों लौटे और हम लोग गाड़ी में बैठ पुष्कर की ओर निकल गए।

कुछ ही समय में हम पुष्कर पहुँच गए और हमें अपना होटल, राजस्थान पर्यटन विभाग का होटल सरोवर(जो कि पुष्कर के सरोवर के बाजू में ही स्थित है), ढूँढने में भी कोई दिक्कत नहीं आई। होटल पहुँच हमने रिसेप्शन पर बताया कि हम लोगों की रिज़र्वेशन है तो उत्तर मिला कि कमरे दोपहर 12 बजे के बाद ही मिलेंगे क्योंकि उस समय कोई भी कमरा खाली नहीं था। बारह बजने में लगभग आधा घंटा था इसलिए हम होटल के लॉन में आकर बैठ गए। वहाँ कुछ प्यारे से कुत्ते के पिल्ले आपस में खेल रहे थे। मैंने उनकी तस्वीर लेने के लिए कैमरा चालू किया तो वे तुरंत तस्वीर खिंचवाने के लिए पोज़ में आ गए। 😉


( पुष्कर के होटल सरोवर के लॉन में बैठे कुछ पिल्ले )


लेकिन स्निग्धा जब उनको पुचकारने के लिए गई तो उसके हाथ में न कोई खाने का सामान था और न ही कैमरा। तो कदाचित्‌ खतरा भाँप के सारे पिल्ले भाग के पास ही एक झाड़ी के पीछे चले गए!! 😉


( स्निग्धा से डरकर छुपते पिल्ले )


आसपास नज़र दौड़ाने से पता चला कि आसपास बहुत ही अच्छे नज़ारे थे।


( होटल का खाली तरणताल और दूर स्थित पहाड़ी )


जल्द ही हमें हमारे कमरे मिल गए तो उनमें अपना सामान रख हमने तुरंत दोपहर का भोजन निपटाया और गाड़ी में ब्रह्मा मंदिर की ओर निकल पड़े। ब्रह्मा मंदिर से पहले एक मार्ग सावित्री मंदिर की ओर जाता है जो कि एक पहाड़ी के शिखर पर स्थित है।


( पुष्कर में स्थित सावित्री मंदिर जाने का मार्ग )


सभी ने पहले वहीं जाने का निर्णय किया। गाड़ी चढ़ाई के आरंभ में ही खड़ी कर हम पैदल आगे बढ़ चले। मंदिर में चढ़ाने के लिए हमने प्रसाद लिया। योगेश और स्निग्धा सामान्य पथ से ऊपर जाने के इच्छुक नहीं थे, उन पर ट्रेकिंग तथा पर्वतारोहण का भूत जमकर नृत्य कर रहा था इसलिए उन्होंने रेतीले और पथरीले मार्ग से ऊपर वहाँ तक चढ़ने की सोची जहाँ तक सुगमता से चल के जाया जा सकता था। हितेश और शोभना भी उनके साथ हो लिए। एन्सी उस तरीके से ऊपर जाने के लिए तैयार नहीं थी तो उसका साथ देने के लिए मैं उसके साथ हो लिया। हम लोग आराम से ऊपर चढ़े जा रहे थे, बीच बीच में एकाध जगह रूक कर तस्वीरें आदि ले रहे थे। थोड़ा ऊपर पहुँच पीछे देखा तो पूरा पुष्कर और पुष्कर की दूसरी ओर पहाड़ी पर स्थित पाप मोचिनी मंदिर दिखाई पड़ रहा था।


( पुष्कर तथा दूसरी ओर पहाड़ी पर स्थित पाप मोचिनी मंदिर )


आधे रास्ते से थोड़ा और ऊपर पहुँचने पर मार्ग के एक ओर से एक बहुत अच्छा नज़ारा दिखा जिसने एक रोमांच की सी अनुभूति करवाई।


अन्य साथियों की आवाज़ें सुनाई पड़ रही थी, उनकी ओर से अब ऊपर आने का मार्ग दुर्गम था क्योंकि पहाड़ी सीधी हो रही थी, इसलिए उनको आम-मार्ग पर आने को बोल दिया। कुछ ही मिनट में वे ऊपर आते दिखाई पड़ गए!!


इस पहाड़ी पर लंगूरों की भरमार थी और सभी लंगूर दिलेर इतने थे कि हाथों से सामान छीन के भाग जाते थे। ऐसा ही एक लंगूर रास्ते में शोभना के हाथों से प्रसाद छीन के भाग गया था। मैंने और एन्सी ने अपना अपना प्रसाद एन्सी के बैग में रख दिया था इसलिए वह बचा रह गया।


( एक लंगूर माँ अपने बच्चे के साथ )


आखिरकार हम सभी ऊपर शिखर पर पहुँच ही गए। ऊपर आते समय अन्य लोगों को कोई दिक्कत महसूस हुई या नहीं यह मैं नहीं जानता लेकिन पिछले अगस्त में तुन्गनाथ की कठिन चढ़ाई के बाद यह चढ़ाई तो बहुत मामूली सी लगी। 😉

पुष्कर में विदेशी पर्यटक बहुत आते हैं, इज़राईल से तो बहुत बड़ी संख्या में आते हैं, यहाँ सावित्री मंदिर में भी कई विदेशी पर्यटक आए हुए थे। मंदिर परिसर में तस्वीर लेना वर्जित था इसलिए हम केवल दर्शन कर और प्रसाद चढ़ा के बाहर आ गए। बाजू में ही एक हिल टॉप कैफ़े यानि कि एक चाय की दुकान थी जिसने अन्य सामान जैसे चॉकलेट, बिस्कुट, शीतल पेय आदि भी रख रखे थे। दुकान के सामने छोटी सी समतल भूमि थी जिसके आगे खाई थी और एक ओर से सूर्यास्त होता दिख रहा था। नज़ारा बहुत ही मनमोहक था इसलिए (मेरे अतिरिक्त)सभी ने वहीं (कुर्सियों पर)बैठ चाय पीने का निर्णय लिया।

सूर्यास्त हो रहा था, इसलिए इस समय श्वेत-श्याम तस्वीरें बहुत सुंदर आईं।




जब चाय आदि पी जा रही थी तो सभी लंगूर ताक में आसपास ही बैठे थे। शोभना एक बिस्कुट का पैकेट लेकर आई और तुरंत ही एक लंगूर उसे छीन के भाग गया!! इसलिए दूसरा पैकेट खोलते समय सभी सतर्क थे, जैसे ही लगा कि कोई लंगूर झपटने वाला है वैसे ही उसे छुपा के लंगूर को डरा के भगाया गया। अंधेरा हो आया था, वापसी का मार्ग कोई आसान नहीं था और वह भी अंधेरे में, तो इसलिए हमने वापसी की राह पकड़ी। ऊपर आते समय जगह-२ सूचनापट देखे थे जो कि सूर्यास्त से पहले नीचे उतर आने पर ज़ोर दे रहे थे, फ़िर भी हमारा सूर्यास्त से पहले नीचे उतरना हुआ ही नहीं, क्योंकि हम ऊपर सूर्यास्त से कुछ पहले ही गए थे। मार्ग में कुछ बल्ब आदि लगे थोड़ी रोशनी प्रदान कर रहे थे परन्तु वह पर्याप्त नहीं थी, इसलिए सावधानीवश हम एक दूसरे का हाथ पकड़ नीचे उतरे।

नीचे आकर सभी ने चैन की सांस ली और फ़िर ब्रह्मा मंदिर की ओर बढ़ चले।

अगले अंक में जारी …..