पहले भी कई बार लिखा जा चुका है, मैंने भी लिखा है तथा अन्य लोगों ने भी लिखा है, कि क्या कारण हो सकते हैं कि लोग हिन्दी जानते हुए भी हिन्दी में बात नहीं करते। जब भी किसी अच्छे हाई-फ़ाई रेस्तरां में जाता हूँ और वहाँ पर पूछा जाता है:

हैलो सर! व्हॉट वुड यू लाईक टु हैव?

या किसी अन्य संस्थान में जाओ तो वहाँ पर स्वागत कक्ष में बैठी महिला पूछतीं हैं:

हाऊ मे आई हैल्प यू?

जब ऐसा होता है तो मुझे उस संस्थान/रेस्तरां के मैनेजमैन्ट आदि पर बड़ी कोफ़्त होती है। बड़े बड़े बी-स्कूल में पढ़ मैनेज करना आदि तो सीख लेते हैं लेकिन बाकी कुछ नहीं सीखते। अब यहाँ वेटर या उस रिसेप्शनिस्ट की गलती नहीं है, उन्हें तो जैसे बोला जाएगा वही करेंगे नहीं तो नौकरी से हाथ धोएँगे। लेकिन जो उनको ऐसा करने को बोलते हैं वे अपनी ज़रा भी अक्ल का प्रयोग नहीं करते। अरे भई यदि किसी भारतीय को संबोधित कर रहे हो(खासतौर पर जब वो उत्तर भारतीय दिख रहा है) तो उसे हिन्दी में क्यों नहीं संबोधित करते? यदि सामने वाले को हिन्दी समझ नहीं आई तो उससे अंग्रेज़ी आदि में वार्तालाप को आगे बढ़ाया जा सकता है लेकिन सीधे ही अंग्रेज़ी में बात करना तो समझदारी नहीं दिखती!! और संबोधित हो रहे लोग भी अधिकतर भूरे/काले अंग्रेज़ होते हैं जो अंग्रेज़ी में ही बात करना पसंद करते हैं!!

अभी कल(शनिवार) की बात है, दिल्ली ब्लॉगर समूह की स्थापना के तीन वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक भेंटवार्ता लोधी गार्डन में आयोजित की गई। अब मेरा वहाँ जाने का पूरा पिरोगराम फिट था, लेकिन अचानक परसों रात ऑफ़िस का कुछ आवश्यक कार्य आ जाने से पूरी रात उसको करना पड़ा, कल सुबह नौ बजे सोया और फिर दोपहर में एक बजे उठा। सिर में तीव्र दर्द हो रहा था इसलिए मैंने सोचा कि नहीं जाते भेंटवार्ता में, वैसे भी दो बजे का समय था पहुँचने का। लेकिन बाद में भी तो जा सकते थे, यह सोच अपन तैयार हुए, योगेश को फ़ोन कर पूछा कि साथ चलने का मन है क्या, बोले आ जाओ तो उनके घर पहुँच गए। अब साहब तैयार नहीं थे, तो उसमें कुछ मिनट लगाए, चलने से पहले सोचा कि पहले देख लें कि भेंटवार्ता अभी चल रही है कि नहीं, तो मोन्टू को फ़ोन लगाया और पता चला कि वह तो आधा घंटा पहले समाप्त हो गई और अब तो मोन्टू भी घर पहुँचने वाला है। सांयकाल के पाँच बज रहे थे, तो हम दोनों ने सोचा कि क्नॉट प्लेस हो आया जाए, घूम-फिर के वापस आ जाएँगे।

क्नॉट प्लेस पहुँच हमने सोचा कि कुछ खा-पी लें तो इसी गरज से पहुँच गए “निज़ाम्स काठी कबाब” में। अभी अपना ऑर्डर दिया ही था कि वहाँ रखी एक तख़्ती पर मेरी निगाह पड़ी और उसे देख बड़ी प्रसन्नता हुई।

ऐसा पहला रेस्तरां देखा जहाँ वो अंग्रेज़ी में बातचीत का दिखावा नहीं, इसको देख मुझे कितनी प्रसन्नता हुई मैं बता नहीं सकता। मैंने सोचा कि चलो कोई रेस्तरां तो है जो अपनी भाषा की परवाह करता है और उसमे बात करने से अपने को छोटा या लज्जित महसूस नहीं करता। यदि इसी तरह सभी रेस्तरां हो जाएँ और भारतीय(खास तौर से उत्तर भारतीय) ग्राहकों से हिन्दी में बोलें तो वाकई बहुत अच्छा हो जाएगा। 🙂

कहने का अर्थ है कि ऐसा भी नहीं है कि लोगों को भाषा समझ नहीं आती। तो फ़िर अपनी ही भाषा में बात करने को हीनता क्यों समझा जाता है??

वैसे कल बहुत बड़ा लफड़ा भी हो जाता। हुआ यूँ कि वेन्गर से पेस्ट्री आदि ले हम बाहर बैठ खा रहे थे और वहाँ एकाध तस्वीरें भी लीं। अब वहाँ से कैफ़े कॉफ़ी डे में कॉफ़ी पीने चले गए, पहले नीचे बैठे और फ़िर जब देखा कि ऊपर जगह खाली है तो ऊपर जाकर सोफ़े पर बैठने की सोची। अब ऊपर जाकर देखा कि कैमरा तो हाथ में है ही नहीं!! वापस आ नीचे देखा तो कुर्सी पर जहाँ पहले सामान रखा था वहाँ भी नहीं दिखा, मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई!! वापस उसी जगह गया, वेन्गर के पास, जहाँ हम लोग बैठे थे परन्तु वहाँ भी नहीं मिला। पास के कूड़ेदान में भी देख डाला कि कहीं गलती से खाली डब्बे के साथ कैमरा भी तो नहीं फ़ेंक दिया!! इतने में योगेश का फ़ोन आया और पता चला कि उनको कैमरा वहीं कैफ़े में नीचे की कुर्सी पर पड़ा मिल गया है जो कि हड़बड़ी में मुझे नहीं दिखा! मैंने चैन की सांस ली और वापस अपनी कॉफ़ी पीने पहुँच गया। 😀

कैफ़े कॉफ़ी डे वालों की एक नई कॉफ़ी(नई बोले तो मेरे लिए नई) का ज़ायका लिया, कोलोम्बियन क्वेस्ट, जो कि उनकी अंतर्राष्ट्रीय कॉफ़ियों में से एक है। इस श्रेणी की दूसरी कॉफ़ी, इथोपियन काहवा, मुझे कुछ खास नहीं लगी, लेकिन वह कोलोम्बियन क्वेस्ट बढ़िया थी। इसमें ये लोग तीन ज़ायके(फ़्लेवर) देते हैं – आयरिश, हेज़लनट(एक प्रकार का बादाम) और चॉकलेट। तो इसमें मैंने आयरिश ज़ायके वाली कॉफ़ी ली और उसका स्वाद बढ़िया था! 🙂 कभी मौका लगे तो आप भी पी कर देखिएगा, एक बड़े आकार के कप में सर्व होने वाली यह कॉफ़ी आपको भी अच्छी लगेगी। और मैं अगली बार जब किसी कैफ़े कॉफ़ी डे में जाऊँगा तो हेज़लनट ज़ायके वाली ट्राई करके देखूँगा। 😉