पॉयरेट्स ऑफ़ द कैरिबियन – द कर्स ऑफ़ द ब्लैक पर्ल” (कैरिबियन के समुद्री डाकू – काले मोती का शाप) फ़िल्म जब आई थी तब देखी थी, फ़िल्म उस समय आने वाली फ़िल्मों से थोड़ा अलग हटकर थी, सही भी थी। लेकिन उसके अगले भाग की आशा नहीं थी। परन्तु उसका अगला भाग “पॉयरेट्स ऑफ़ द कैरिबियन – डैड मैन्स चैस्ट” (कैरिबियन के समुद्री डाकू – मुर्दे का संदूक) कुछ महीने पूर्व रिलीज हो गया और सुना लोगों ने इस फ़िल्म को भी पसंद किया। अब उस समय मैं फ़िल्म देखने नहीं जा सका, तो अभी हाल ही में जब इसकी सीडी बाज़ार में आई मैंने तुरंत खरीद ली। परन्तु व्यस्तता के चलते उसे भी उसी समय नहीं देख पाया। परन्तु आज जब कंप्यूटर में क्रिएटिव का साउंड कार्ड लग गया तो सोचा कि आज देख ही डालते हैं, नए लिए क्रिएटिव के 4.1 स्पीकर सिस्टम पर आवाज़ भी जबरदस्त आएगी। 😀

फ़िल्म जब आरम्भ हुई तो पिछले भाग की तरह करीब एक-तिहाई भाग तो धीमा सा लगा लेकिन उसके बाद के दो-तिहाई भाग को तो एक रोलर कोस्टर की सवारी कह सकते हैं। बढ़िया लोकेशनों पर हुई शूटिंग और हान्स ज़िम्मर द्वारा रचित शानदार साउंडट्रैक ने फ़िल्म में जान फूँक दी। जॉनी डैप ने पूरी फ़िल्म में अपना किरदार सही ढंग से अदा किया, कैप्टेन जैक स्पैरो पूरी मौज में लगे। “लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स”, “ट्रॉय” तथा “किंगडम ऑफ़ हेवन” के बाद ऑर्लेन्डो ब्लूम ने इस फ़िल्म में भी अच्छा अभिनय किया है, विल टर्नर की अदाकारी पिछले भाग से अधिक बढ़िया थी। कीरा नाइटली का इस फ़िल्म में भी कोई खास किरदार नहीं सिवाय एक दो दृश्यों के जहाँ उसके किरदार में दम लगा, अन्यथा पूरी फ़िल्म में जैक स्पैरो और विल टर्नर हावी रहे हैं। लेकिन इस फ़िल्म में एलिज़ाबैथ(कीरा नाइटली) एक ऐसा कार्य करती है जो बहुतों को अजीब या गलत लगेगा, उसकी उस हरकत के कारण जैक को कुछ हो जाता है ….. शायद वह मर जाता है। लेकिन इसी से अगले भाग की भूमिका रचती है, तो अब अनुमान लगा सकते हैं कि अगले वर्ष अगले भाग, “पॉयरेट्स ऑफ़ द कैरिबियन – ऐट वर्ल्ड्स एन्ड” (कैरिबियन के समुद्री डाकू – दुनिया के अंतिम छोर पर) जो कि कदाचित कड़ी की आखिरी फ़िल्म होगी, में क्या देखने को मिलेगा!! 😉

यदि रेटिंग के लिए बोला जाए तो इस फ़िल्म को मैं 5 में से 4.5 अंक दूँगा। कहानी कोई बहुत निराली नहीं है, देखने वालों को यह पता चल ही जाएगा जिन्होंने बचपन में राक्षस और तोते में कैद उसकी जान की कहानियाँ पढ़ी/सुनी हैं, लेकिन उस कहानी को किस तरह से फ़िल्माया गया है, किस तरह की जगहों पर फ़िल्माया गया है, किरदारों ने अपनी भूमिका कैसी निभाई है, यही वे चीज़ें हैं जो एक फ़िल्म को बढ़िया अथवा घटिया का तमगा दिलवाती हैं और मैं यही कहूँगा कि इस फ़िल्म ने निराश नहीं किया।

अगर अभी तक फ़िल्म नहीं देखी है तो जैसे ही मौका मिले देख लें, बढ़िया टाईमपास की पूरी गारंटी है(शर्तें लागू)। 🙂 और अपन इंतज़ार में हैं इसके अगले भाग की!! 😉