तिथि: १९ फरवरी २००६
समय: सुबह के लगभग साढ़े ७ बजे
स्थान: दिल्ली की रिंग रोड, नारायणा के आगे

एक लाल रंग की एलएमएल ग्रैपटर मोटरसाईकिल लगभग ८५ कि.मी. प्रति घंटे की रफ़्तार से खाली पड़ी सड़क पर दम साधे उड़ी जा रही थी, उसको मैं चला रहा था। प्रश्न है कि मैं इतनी सुबह वहाँ क्या कर रहा था। भई मैं अपने गंतव्य की ओर बढ़ा चला जा रहा था। रविवार की सुबह थी, हल्का धुंध या धुँए का कोहरा भी था, पर सड़क अपेक्षा अनुसार खाली पड़ी थी, कोई इक्का-दुक्का वाहन ही दिखाई दे रहा था। पर सड़क खाली होने के बावजूद मैं अधिक गति से नहीं जा रहा था, क्योंकि मैं इतनी सुबह ताज़ी हवा में मोटरसाईकिल चलाने का पूरा आनंद लेने में व्यस्त था, गति का कोई महत्व नहीं था। अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान(aiims) आने पर एक घुमावदार मोड़ लेकर मैं भारतीय टेक्नॉलोजी संस्थान(IIT) की ओर मुड़ गया। अब दिल्ली के इस भाग में मैं पहले कभी नहीं आया था, पापा से रास्ता पूछ लिया था सो उनके निर्देशानुसार सीधे ही निकल लिया। थोड़ा आगे जाने पर एक सरदारजी से पूछा और आखिरकार, निश्चित समय से १५ मिनट पहले, ७:४५ पर मैं पहुँच ही गया, मेहरौली-गुड़गाँव सड़क पर स्थित फूल बाज़ार के मुहाने पर, जहाँ “हिस्ट्री वाल्क” के लिए आए सभी श्रद्धालुओं को एकत्र होना था।

यह “हिस्ट्री वाल्क” इंडिया हैबिटैट सेन्टर द्वारा आयोजित की गई थी। अब क्योंकि मैं पहली बार आया था, इसलिए मैं किसी को जानता पहचानता नहीं था। सो मैंने निश्चय किया कि जो भी व्यक्ति कैमरे के साथ दिखाई पड़ेगा, उससे ही पूछ लेंगे, क्योंकि बहुत अधिक संभावना है कि कोई कैमरे वाला इतनी सुबह वहाँ है तो वह भी मेरी तरह “हिस्ट्री वाल्क” के लिए आया है। कुछ ही पल में मुझे एक महिला दिखाई दीं कैमरे के साथ, मैंने उनसे पूछा कि क्या वें “हिस्ट्री वाल्क” के लिए आईं हैं। तो पता चला कि वे इंडिया हैबिटैट सेन्टर से है और उनका नाम रेणु है। मन ही मन सोचा कि वाह भई, मजे आ गए, अधिक देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। तभी रेणु को “हिस्ट्री वाल्क” के गाईड, श्री विकास हरीश दिखाई दे गए जो कि कदाचित् उसी समय पहुँचे थे। विकास से परिचय हुआ और इतने में और लोग भी आ गए। विकास ने कहा कि क्योंकि फूल बाज़ार के दो प्रवेश द्वार हैं, तो इस कारण कुछ उलझन थी कि कहाँ पर एकत्र होना है, इसलिए कुछ लोग दूसरे प्रवेश द्वार पर प्रतीक्षा कर रहे थे। रेणु उनको बुलाने चली गईं और विकास से बातों बातों में ही पता चला कि वे फ़्रांस की राजधानी पेरिस में रहते हैं और साल में लगभग तीन सप्ताह के लिए ही भारत आते हैं। वहाँ वे विश्वविद्यालयों आदि के साथ भारतीय इतिहास से सम्बन्धित कार्य करते हैं। अभी आजकल वे न्यू यार्क की किसी कलाकार की प्रदर्शिनी के कारण दिल्ली आए हुए हैं, जोकि ८ मार्च से शुरू हो रही है।

रेणु बाकी के लोगों को दूसरे प्रवेश द्वार से ले आईं और हम लोगों ने उद्यान में प्रवेश किया। विकास ने बताया कि यह उद्यान अभी हाल ही में बना है, अन्यथा पहले यहाँ कुछ नहीं था। तो हमने जमाली कमाली मस्जिद की राह पकड़ी। रास्ते में दाईं ओर पेड़ों के पीछे से कुतुब मीनार दिखाई दे रही थी, दृश्य बड़ा ही अच्छा लग रहा था, सो कैमरे में बंद कर लिया। 🙂


जमाली कमाली मस्जिद पहुँचने पर सभी लोग विकास को घेर खड़े हो गए, और विकास बताने लगे, कि यह मस्जिद लगभग १५२६ ईसवी में आखिरी लोधी बादशाह के समय में बननी शुरू हुई थी और तकरीबन १५४५ ईसवी में हुमायुँ के शासनकाल में बनकर तैयार हुई। उस समय की वास्तुकला आदि के बारे में भी विकास ने बहुत कुछ बताया, जो कि मैं यहाँ लिखना नहीं चाहता। 🙂

अन्दर से भी मस्जिद को देखा, आलों आदि में बहुत अच्छी नक्काशी है, जो कि देखते ही बनती है और उस समय की शिल्प कला की खूबसूरती की गवाह है। विकास ने हमें गलियारे के एक सिरे पर खड़े होकर पूरे गलियारे को देखने को कहा। और जो हमने देखा, वह नज़ारा देखते ही बनता था।


फ़िर हम जमाली और कमाली के मकबरे की ओर चल दिए, जो कि शिल्प कला का एक सुन्दर नमूना है, बाहरी दीवार के ऊपरी भाग में अभी भी उस समय की टाईलें लगी हुईं है। विकास फ़िर हमें जमाली और कमाली की कहानी बताने लगे।

तत्पश्चात हम चल दिए राजों की बावली की ओर। यह बावली बड़ी अच्छी बनी हुई है, अन्य बावलियों की तरह इसे भी बारिश का पानी एकत्र करने के लिए बनाया गया था।


यह राजाओं आदि के प्रयोग के लिए नहीं थी, बल्कि राजगीरों के लिए थी, जिन्हें संगतराश भी कहा जाता है। इसके बारे में भी विकास ने बहुत अच्छे से विस्तार से बताया।


तत्पश्चात हम लोग बावली की छत पर चढ़ गए। जिन लोगों को ऊँचाई से डर नहीं लगता और जो छोटे बच्चों के साथ नहीं थे(एक जोड़ा दो छोटे बच्चों के साथ भी आया था) उन्हें विकास ने छत पर मौजूद कुएँ में झाँककर देखने के लिए आमंत्रित किया। यह कुँआ फ़िलहाल सूखा पड़ा है और बहुत गहरा है, जिसे बावली की दीवार में ऊपर से नीचे तक बनाया गया था। फ़िर हम छत पर मौजूद एक गुम्बद की नक्काशी देखने लगे जिसके नीचे एक कब्र बनी हुई है। विकास के अनुसार यह इस बावली के रखवाले की रही होगी। बमय विकास इस जगह पर जो आखिरी तारीख़ मिली है वह हिज्र कैलेन्डर के अनुसार सन् १५०६ की है जो कि इसी गुम्बद पर कहीं लिखी हुई है।


विकास ने हमारा ध्यान एक झरोखे की ओर आकर्शित किया और उस पर मौजूद नक्काशी की ओर हमारा ध्यान ले गए, जो कि इस्लामी वास्तुकला न होकर राजस्थानी वास्तुकला का नमूना है। इस बारें थोड़ा और विस्तार से बताने के बाद विकास ने समापन की घोषणा कर दी और हम सभी वापस अपने समय में लौट आए। 🙂 लगभग दो घंटे हो चुके थे, अन्यथा विकास का इरादा पास ही मौजूद गंधक बावली की ओर भी ले जाने का था, बमय विकास जिसके पानी में गंधक प्रचुर मात्रा में उपस्थित है, जिस कारण उस बावली का नाम गंधक बावली है।

कुछ लोग अब जा रहे थे, कुछ विकास को घेरे प्रश्नों की बौछार कर रहे थे। मैंने कुछ और छायाचित्र लेना बेहतर समझा।


इंडिया हैबिटैट सेन्टर की रेणु उन लोगों के ईमेल एक पुस्तिका में लिख रही थी जो आने वाली “हिस्ट्री वाल्क” आदि के बारे में सूचित किया जाना चाहते थे। तो मैंने भी अपना ईमेल दर्ज करा दिया और फ़िर हम सब वापस हो लिए। जगह यदि बढ़िया होगी तो “हिस्ट्री वाल्क” पर मैं पुन: जाऊँगा, बढ़िया छायाचित्र लेने का मौका तो मिलता ही है, साथ ही बहुत सी जानकारी प्राप्त कर दिमाग तरोताज़ा हो जाता है। 😀